हिन्दू मुस्लिम एकता
Wednesday, September 19, 2012
Some Photos which Unites
Sunday, August 26, 2012
Saturday, February 18, 2012
10 लाख मुस्लिम लोगों ने गौ-हत्या के विरोध में हस्ताक्षर करवाए
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मुस्लिम भाइयों ने अमन प्रेम का सन्देश देते हुए एक ऐसे उदहारण को प्रस्तुत किया जो कभी देखा या सुना नहीं गया। इस समाचार को मेन स्ट्रीम मीडिया ने ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर इसलिए नहीं दिखाया क्यूंकि इस समाचार से अमन और शान्ति का सन्देश मिलता है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, आर.एस.एस के तत्वाधान में एक ऐसा मंच है जो देश प्रेम की अनूठी मिसाल को प्रस्तुत कर रहा है।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कार्यकर्ता पूरे भारत में यात्रा कर एकता एवं अखंडता का सन्देश जन जन तक पहुंचा रहे हैं। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने लगभग १० लाख मुस्लिम लोगों के हस्ताक्षर गौ-हत्या के विरोध में करवा के दिखलाये। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय एकीकरण के इतने बड़े प्रयास को मीडिया ने कभी दिखाने का प्रयास नहीं किया।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच विगत ३ माह से "हम हिन्दुस्तानी, कश्मीर हिंदुस्तान का", नाम से एक सशक्त अभियान चलाये हुए था। इस अभियान के अंतर्गत राष्ट्रवादी मुस्लिमों से मस्जिदों में प्रार्थनाएं की, व्याख्यान आयोजित किए एवं देश भर में सभाएं की। अभियान का समापन इस रविवार को दिल्ली में हुआ जिसमें इतनी सर्दी के बाद भी देश के २३ राज्यों के १७५ जनपदों से आये १० हज़ार राष्ट्रवादी मुस्लिमों ने भाग लिया। समापन समारोह में कश्मीर को शेष भारत से अलग संविधान देने वाली धारा ३७० को स्थायी रूप से समाप्त करने, कश्मीरी युवाओं को रोजगार दिलवाने, एवं पाकिस्तान एवं चीन द्वारा हड़प लिए गए कश्मीर के भूभागों को वापस लेने की मांगें उन १० हज़ार मुस्लिमों द्वारा एक स्वर में उठायी गयी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने गत माह पश्चिमी यूपी के मुस्लिम बहुल इलाकों में कई कार्यक्रम चलाए। पश्चिमी यूपी के कई जिलों मुरादाबाद, बरेली, सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, मेरठ और आगरा में संगठन अलग-अलग स्ताथों पर मौलानाओं और समुदाय के प्रभावी लोगों से संपर्क में रहे।
Source: http://hindi.ibtl.in/news/exclusive/1887/article.ibtl
मदरसे में कुरान के साथ भगवत गीता की शिक्षा
मदरसा पदाधिकारियों के मुताबिक, यहां छात्रों को चारों वेद- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद की भी शिक्षा दी जाती है। यहां करीब 2500 छात्र पढ़ते हैं। लड़कियों के लिए 12वीं तक शिक्षा की व्यवस्था है, जबकि लड़कों के लिए आठवीं तक पढ़ाई की सुविधा है। मदरसे में कई हिन्दू शिक्षक हैं, लेकिन फिलहाल यहां कोई हिन्दू छात्र नहीं पढ़ रहा।
Source : http://www.jagran.com/spiritual/religion-6514.html
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Tuesday, January 3, 2012
एक हिंदू द्वारा परवरिश किया गया एक मुस्लिम लड़का
एक सच्ची व् प्रेरणा दायक कहानी
भाग 1
भाग 2
This True Crime Petrol story was based on this true story http://www.ummid.com/news/
भाग 1
भाग 2
This True Crime Petrol story was based on this true story http://www.ummid.com/news/ 2011/August/12.08.2011/ boy_prefer_hindu_guardian.htm
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Wednesday, October 5, 2011
क्या हिंदू क्या मुसलमान, यहां तो जीते हैं सिर्फ इंसान
http://www.bhaskar.com/article/UP-hindu---muslim-will-be-alert-to-the-politics-the-bad-news-for-you-2479075.html?HF-4=
फैजाबाद। नसीम खान वैसे तो अपनी छोटी सी सिलाई की दुकान की आय से संतुष्ट हैं लेकिन हर वर्ष दशहरा से पहले वह थोड़े से चिंतित हो जाते हैं। गांव में दशकों से हो रही रामलीला का आयोजन सुचारू रूप से हो सके इसलिए उन्हें बड़े पैमाने पर मिले काम लेकर ज्यादा पैसों का बंदोबस्त करना पड़ता है।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के मुमताज नगर गांव में नसीम की तरह दूसरे मुसलमान भी रामलीला के आयोजन में दिल खोलकर चंदा देकर सालों से चली आ रही इस परम्परा को संजोए हुए हैं। दशकों से मुसलमान इस रामलीला का आयोजन करते आ रहे हैं।
नसीम खान ने कहा, "हमें गर्व है कि हम इस तरह की परम्परा निभा रहे हैं, जो सही अर्थो में आपसी भाईचारे को मजबूत करती है। हर साल दशहरे पर जब हम लोग रामलीला का आयोजन करते हैं तो हम में ऐसी भावनाएं उमड़ती हैं कि जैसे हम ईश्वर की सेवा कर रहे हैं। आखिरकार हिंदू भाई भी तो उसी ईश्वर की संतान हैं।"
रामलीला का आयोजन रामलीला रामायण समिति के बैनर तले होता है। अब से करीब 47 साल पहले गांव के मुसलमानों ने मिलकर आपसी भाईचारे को मजबूत करने के उद्देश्य से इस समिति का गठन किया था। मुमताजनगर गांव की आबादी करीब 600 है जिसमें से तकरीबन 65 फीसदी मुसलमान समुदाय के लोग हैं।
समिति के अध्यक्ष माजिद अली ने कहा, "एक मुस्लिम बहुल गांव होने के मद्देनजर मुस्लिम त्योहारों के दौरान मुमताज नगर का महौल बहुत जीवंत और आकर्षक लगता था। गांव में हिंदुओं की आबादी को सीमित देखते हुए हमारे पूर्वजों ने सोचा कि उन्हें हिंदुओं के त्योहारों को बढ़ावा देने के लिए कुछ करना चाहिए। फिर उन्होंने 1963 में रामलीला के आयोजन की शुरुआत की, जो तब से लगातार जारी है।"
अली कहते हैं कि मुसलमान समुदाय के विभिन्न वर्गो के लोग इस समिति के सदस्य हैं। कम आय होने के बावजूद गांव के मुसलमान रामलीला के आयोजन में हर तरह से आर्थिक मदद देते हैं। जो लोग चंदा देने में असफल होते हैं वे रामलीला के आयोजन में श्रमदान देते हैं।
गांव के मुसलमान केवल आर्थिक सहयोग और श्रमदान के जरिए रामलीला के आयोजन तक ही खुद को सीमित नहीं रखते बल्कि वे इसमें अभिनय भी करते हैं। अली ने बताया, "हमारे भाई-बंधु राम, सीता और रावण जैसे रामलीला के मुख्य किरदारों के अलावा मंच पर अन्य कई महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं।"
इस साल यहां रामलीला की शुरुआत एक अक्टूबर से हुई है, जो आठ तारीख तक चलेगी। रामलीला का आयोजन शुरुआत से ही गांव के किनारे एक मैदान में होता आ रहा है। पहले रामलीला का मंचन अस्थाई मंच पर होता था लेकिन कुछ साल पहले आपसी सहयोग से वहां पर एक सीमेंट का मंच बना दिया गया है।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के मुमताज नगर गांव में नसीम की तरह दूसरे मुसलमान भी रामलीला के आयोजन में दिल खोलकर चंदा देकर सालों से चली आ रही इस परम्परा को संजोए हुए हैं। दशकों से मुसलमान इस रामलीला का आयोजन करते आ रहे हैं।
नसीम खान ने कहा, "हमें गर्व है कि हम इस तरह की परम्परा निभा रहे हैं, जो सही अर्थो में आपसी भाईचारे को मजबूत करती है। हर साल दशहरे पर जब हम लोग रामलीला का आयोजन करते हैं तो हम में ऐसी भावनाएं उमड़ती हैं कि जैसे हम ईश्वर की सेवा कर रहे हैं। आखिरकार हिंदू भाई भी तो उसी ईश्वर की संतान हैं।"
रामलीला का आयोजन रामलीला रामायण समिति के बैनर तले होता है। अब से करीब 47 साल पहले गांव के मुसलमानों ने मिलकर आपसी भाईचारे को मजबूत करने के उद्देश्य से इस समिति का गठन किया था। मुमताजनगर गांव की आबादी करीब 600 है जिसमें से तकरीबन 65 फीसदी मुसलमान समुदाय के लोग हैं।
समिति के अध्यक्ष माजिद अली ने कहा, "एक मुस्लिम बहुल गांव होने के मद्देनजर मुस्लिम त्योहारों के दौरान मुमताज नगर का महौल बहुत जीवंत और आकर्षक लगता था। गांव में हिंदुओं की आबादी को सीमित देखते हुए हमारे पूर्वजों ने सोचा कि उन्हें हिंदुओं के त्योहारों को बढ़ावा देने के लिए कुछ करना चाहिए। फिर उन्होंने 1963 में रामलीला के आयोजन की शुरुआत की, जो तब से लगातार जारी है।"
अली कहते हैं कि मुसलमान समुदाय के विभिन्न वर्गो के लोग इस समिति के सदस्य हैं। कम आय होने के बावजूद गांव के मुसलमान रामलीला के आयोजन में हर तरह से आर्थिक मदद देते हैं। जो लोग चंदा देने में असफल होते हैं वे रामलीला के आयोजन में श्रमदान देते हैं।
गांव के मुसलमान केवल आर्थिक सहयोग और श्रमदान के जरिए रामलीला के आयोजन तक ही खुद को सीमित नहीं रखते बल्कि वे इसमें अभिनय भी करते हैं। अली ने बताया, "हमारे भाई-बंधु राम, सीता और रावण जैसे रामलीला के मुख्य किरदारों के अलावा मंच पर अन्य कई महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं।"
इस साल यहां रामलीला की शुरुआत एक अक्टूबर से हुई है, जो आठ तारीख तक चलेगी। रामलीला का आयोजन शुरुआत से ही गांव के किनारे एक मैदान में होता आ रहा है। पहले रामलीला का मंचन अस्थाई मंच पर होता था लेकिन कुछ साल पहले आपसी सहयोग से वहां पर एक सीमेंट का मंच बना दिया गया है।
Monday, August 29, 2011
'माधोराम' के बारे में सुन वाह...वाह...कर उठेंगे आप!
'माधोराम' के बारे में सुन वाह...वाह...कर उठेंगे आप!
माधोराम ईद से पहले हिंदू और मुसलमान भाइयों को अपने घर पर रोजा इफ्तार की दावत देते हैं। उनका कहना है कि सभी धर्मो का एक ही लक्ष्य है, इंसानियत को जीवित रखना यानी इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।
मुजफ्फरनगर के रैदासपुरी में रहने वाली माधोराम शास्त्री सींचपाल के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने बगैर किसी प्रचार के पिछले 10 वर्षो से एक अनूठी मुहिम चला रखी है। वह इस्लाम धर्म का समान कर उसके त्योहारों को उसी तरह मानते हैं, जिस तरह मुसलिम भाई मनाते हैं।
माधोराम ने पहले रोजे से ही पूरे नियम कायदे के साथ रोजा रखना शुरू कर दिया था। अब रमजान का महीना अपने अंतिम पड़ाव पर है। रोजे के दौरान वह पानी तक नहीं पीते। अपने मुस्लिम मित्रों से पूछकर वे रमजान में सभी क्रिया-कलाप कठोर नियमों के साथ करते हैं। वो नमाज से लेकर वजू तक को बहुत निकट से महसूस करते हैं। यही वजह है कि उनके मित्र उनकी काफी प्रशंसा करते हैं।
माधोराम के मित्र चाऊ मियां व उनके बेटे मजहर बताते हैं कि वे रमजान में उनके साथ ही बैठकर रोजा इफ्तारी करते हैं। उन्होंने रोजा रखने का विचार कुछ वर्षो पहले जब मुस्लिम मित्रों के सामने रखा तो वे भी आश्चर्य में डूब गए थे कि वह रोजा क्यों रखना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि वह हर धर्म का सम्मान करते हैं, इसलिए मुस्लिम धर्म व मुस्लिमों की भावनाओं की कद्र करने के लिए वह रोजा रखते हैं।
चाऊ मियां व उनके बेटे मजहर कहते हैं कि जब उन्होंने माधोराम को बताया कि रोजा रखने में काफी दिक्कतें आती हैं और कई नियमों को मानना पड़ता है। फिर भी माधो ने रोजा रखने की ठान ली। ऐसा अब वह हर साल बहुत खुशी-खुशी करते हैं। उनकी बस्ती रैदासपुरी के नागरिक भी उनकी इस पहल की प्रशंसा करते हैं। माधोराम तमाम हिंदू पर्व भी मनाते हैं।
नौकरी पूरी करने के बाद माधोराम समाजसेवा में लग गए हैं। ईश्वर-अल्लाह को वह हमेशा इंसानियत का पैगाम देने वाले मानते हैं। उनका कहना है कि वह हर धर्म का सम्मान करते हैं। ईश्वर और अल्लाह उन्हें अच्छी सेहत व बरकत दे रहे हैं। परिवार में हंसी-खुशी है। इस बार उन्होंने रमजान में अपनी इच्छा पूरी होने की मन्नत मांगी थी, जो पूरी हो गई है।
माधोराम अभी तक अपनी बस्ती से शहर-देहात में साइकिल पर घूमते थे। रमजान ने नई मोटरसाइकिल खरीदने की उनकी इच्छा पूरी कर दी है, अब वह रोजा इफ्तारी की तैयारी में लगे हैं। हजारों हिंदू-मुस्लिम भाइयों को कई पकवानों व दावतों के साथ इफ्तारी दी जाएगी। माधोराम के घर में ईद की भी तैयारी है। बच्चों के लिए कपड़े, खिलौने, जूते, खरीदे गए हैं। रमजान के बीच में ही परिवार में जन्माष्टमी का पर्व भी मनेगा। उनका पूरा परिवार बहुत खुश है, क्योंकि वे हर धर्म की अच्छी बातों को ग्रहण कर उसे अपने जीवन में उतार रहे हैं।
source : http://www.bhaskar.com/
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