Monday, August 29, 2011

'माधोराम' के बारे में सुन वाह...वाह...कर उठेंगे आप!

'माधोराम' के बारे में सुन वाह...वाह...कर उठेंगे आप!

 
मुजफ्फरनगर। माधोराम शास्त्री साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गए हैं। वह सभी हिंदू त्योहारों को मनाने के साथ मुस्लिम त्योहार भी मनाते हैं। पिछले दस वर्षो से रमजान के दौरान वह रोजा रखते आए हैं और इस बार भी रोजादारों में शामिल हैं।

माधोराम ईद से पहले हिंदू और मुसलमान भाइयों को अपने घर पर रोजा इफ्तार की दावत देते हैं। उनका कहना है कि सभी धर्मो का एक ही लक्ष्य है, इंसानियत को जीवित रखना यानी इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।

मुजफ्फरनगर के रैदासपुरी में रहने वाली माधोराम शास्त्री सींचपाल के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने बगैर किसी प्रचार के पिछले 10 वर्षो से एक अनूठी मुहिम चला रखी है। वह इस्लाम धर्म का समान कर उसके त्योहारों को उसी तरह मानते हैं, जिस तरह मुसलिम भाई मनाते हैं।

माधोराम ने पहले रोजे से ही पूरे नियम कायदे के साथ रोजा रखना शुरू कर दिया था। अब रमजान का महीना अपने अंतिम पड़ाव पर है। रोजे के दौरान वह पानी तक नहीं पीते। अपने मुस्लिम मित्रों से पूछकर वे रमजान में सभी क्रिया-कलाप कठोर नियमों के साथ करते हैं। वो नमाज से लेकर वजू तक को बहुत निकट से महसूस करते हैं। यही वजह है कि उनके मित्र उनकी काफी प्रशंसा करते हैं।

माधोराम के मित्र चाऊ मियां व उनके बेटे मजहर बताते हैं कि वे रमजान में उनके साथ ही बैठकर रोजा इफ्तारी करते हैं। उन्होंने रोजा रखने का विचार कुछ वर्षो पहले जब मुस्लिम मित्रों के सामने रखा तो वे भी आश्चर्य में डूब गए थे कि वह रोजा क्यों रखना चाहते हैं।

उन्होंने बताया कि वह हर धर्म का सम्मान करते हैं, इसलिए मुस्लिम धर्म व मुस्लिमों की भावनाओं की कद्र करने के लिए वह रोजा रखते हैं।

चाऊ मियां व उनके बेटे मजहर कहते हैं कि जब उन्होंने माधोराम को बताया कि रोजा रखने में काफी दिक्कतें आती हैं और कई नियमों को मानना पड़ता है। फिर भी माधो ने रोजा रखने की ठान ली। ऐसा अब वह हर साल बहुत खुशी-खुशी करते हैं। उनकी बस्ती रैदासपुरी के नागरिक भी उनकी इस पहल की प्रशंसा करते हैं। माधोराम तमाम हिंदू पर्व भी मनाते हैं।

नौकरी पूरी करने के बाद माधोराम समाजसेवा में लग गए हैं। ईश्वर-अल्लाह को वह हमेशा इंसानियत का पैगाम देने वाले मानते हैं। उनका कहना है कि वह हर धर्म का सम्मान करते हैं। ईश्वर और अल्लाह उन्हें अच्छी सेहत व बरकत दे रहे हैं। परिवार में हंसी-खुशी है। इस बार उन्होंने रमजान में अपनी इच्छा पूरी होने की मन्नत मांगी थी, जो पूरी हो गई है।

माधोराम अभी तक अपनी बस्ती से शहर-देहात में साइकिल पर घूमते थे। रमजान ने नई मोटरसाइकिल खरीदने की उनकी इच्छा पूरी कर दी है, अब वह रोजा इफ्तारी की तैयारी में लगे हैं। हजारों हिंदू-मुस्लिम भाइयों को कई पकवानों व दावतों के साथ इफ्तारी दी जाएगी। माधोराम के घर में ईद की भी तैयारी है। बच्चों के लिए कपड़े, खिलौने, जूते, खरीदे गए हैं। रमजान के बीच में ही परिवार में जन्माष्टमी का पर्व भी मनेगा। उनका पूरा परिवार बहुत खुश है, क्योंकि वे हर धर्म की अच्छी बातों को ग्रहण कर उसे अपने जीवन में उतार रहे हैं।


source :  http://www.bhaskar.com/article/UP-a-hindu-on-roza-like-muslims-2373889.html?HF-21=